क्या हो अगर भारतीय स्कूलों में पढाई के साथ- साथ खेलों को महत्व दिया जाए |👀
" यु तो भारतीय स्कूलों में पढाई को अधिक महत्व दिया जाता है ,अगर खेल से तुलना करे तो| परन्तु व्यवाहरिक जीवन में खेल तथा व्यायाम से शरीर चुस्त- तंदुरुस्त रहता है |यदि खेल भी जुड़ जाता है स्कूलों में , तो छात्र भी रूचि रखेंगे विद्यालय आने मैं।
हर ४ साल में आने वाले ओलंपिक्स में भारत अच्छा परफॉर्म कर सकता है। पिछले साल 2021 में टोक्यो ओलंपिक्स में इंडिया का रैंक ४८ था।इसे और भी बढ़ाया जा सकता है , खेल को प्रोत्साहित करके। "
स्कूलो में खेल प्रतियोगिता का इंफ्रास्ट्रक्चर आने से कला को बढ़ावा मिलेगा। हमे पता है की खेल यानि गेम्स भी एक कला है। हाला की छात्रों का मनपसंदीदा गेम आउटडोर गेम्स होता है। यह एक मैदानी गेम होता है , जिसमें छात्र एक दूसरे से ताल-मेल मिलकर खेलतें है।
ज्यादा से ज्यादा खेलों को खेलने के लिए ग्राउंड तथा रूम चाहिए । अगर यह सब मुमकिन नहीं हो पाता है , तो सरकार को इसमें निवेश करना चाहिए या फिर पब्लिक ग्राउंड बनाना चाहिए। इसमें स्विमिंग पूल हो तो और अच्छा होगा। छात्रों को विविध प्रकार के खेलों की जानकारी भी देना चाहिए। यदि समय रहे तो शनिवार तथा रविवार को आधे दिन भी उन्हें ग्राउंड बुलाकर खेल सिखाना चाहिए। वे मना भी नहीं करेंगे क्योकि हमने उनके मनपसंद का विषय चुना है।
यह सब करने से छात्रों में नयी रौनक चमकेगी जैसे मोटिवेटेड रहना , सकारात्मिक बाते करना , कम तनाव ,दोस्तों में मित्रता ,नयी चीज सीखना ,रोज अटेंडेंस लगाना ,आदि कई खूबियाँ होंगी।
इंडोर गेम्स जैसे चैस,कार्रम,आदि को तो वैसे ही बढ़ावा मिला हुआ है , अगर आउटडोर भी आ जाए इस रेस में तो बात बन जाएगी। फिर कोई न कोई 'रोनाल्डो' जैसे या 'मेस्सी' जैसा खिलाड़ी भारत में होगा ; भारत की तरफ से फुटबॉल खेलेगा। अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का डंका बजेगा। जो बच्चे पढ़-लिख कर अपने माँ- बाप का सपना पूरा नहीं कर पाए , वे खेल सीखकर देश का तथा अंतर्राष्ट्रीय मंच पे अपने माँ - बाप का नाम रोशन कर पाएंगे।
जैसे 'तारे जमीन पर' एक मूवी आयी थी , वैसे ही इसपर भी एक फिल्म बनेगी। जिस गेम को हम अपने गल्ली में खेलतें थे , आज वही गेम हम प्रोफेशनल तरीके से खेलने लगेंगे।
इस मोबाइली दुनिया से हट कर ,बच्चे वो करेंगे जिससे हमे कई ज्यादा उम्मीद होगी। दिन भर मोबाइल पे गेम्स खेलने के बजाय वे सभी खेल जितने की प्रैक्टिस में जुट जायेंगे। कम उम्र में चश्मा लगने के बजाय उनके नजरें विरोधियो को धूल चटाने में होगी।
हाला की इससे पढाई को भी नुकसान नहीं होना चाहिए। खेल खेलना तो अपने रूचि से आता है। यदि किसे पढाई यानी किताबों में रूचि रहती है , तो उसे पढाई पे ज्यादा ध्यान देनी चाहिए। अब यह हमपर निर्भर करता है की हम कोनसी फील्ड चुनते है। अगर हम उस काम को कर पाते है जिसमें हम माहिर है , तो बहुत-बहुत बधाई हो ; हमने सफलता को हासिल कर लिया है।
आज के लिया बस इतना ही , अधिक ऐसे ही ज्ञान के लिए हमारे ब्लॉग को अवश्य पढ़े।
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